Nov 22, 2015

मरीचिका...

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मदहोश नैनों से
मद बिखेरती
पैनी नज़रों से
नज़रों को क़त्ल करती
शरारती मृगनयनी
कौन हो तुम?

खनखनाते लबों से
खिलखिलाती
सुर्ख होठों की
मादकता बिखेरती
मदहोश मदिरा
कौन हो तुम?

लचकती, मचकती
बलखाती
नर्म जिस्म की
तेज़ बिखेरती
अत्र दानी
कौन हो  तुम?

आवारा लटें
सुडौल वक्ष
कंपकपाते कमर की
लचक बिखेरती
रुपमयी रति
कौन हो तुम?

सीने में
धड़कती,
ह्रदय से
मर्म बिखेरती
ममता मयी
कौन हो तुम?

पूछा तो,  कहा उसने....
मैं मणि हूँ
समझ न आऊँ
ऐसी परी हूँ...
मैं कस्तूरी हूँ
मरीचिका हूँ...

नैनों की छलावा हूँ
समझ न आये
ऐसी परी हूँ मैं.....
मैं मणि हूँ... 
कामायानी की रति हूँ....

न पा सको ऐसी .........मरीचिका हूँ...

2 comments:

  1. bade khubsurat shabdon ka prayog kiya hai apne, atisundar

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लिखना कभी मेरी चाहत न थी..कोशिश की कभी जुर्रत न थी
शब्दों के कुछ फेर की कोशिश ---यूं कोई सराह गया कि
लिखना अब हमारी लत बन गयी...
-------- दो शब्द ही सही,, आपके शब्द कोई और करिश्मा दिखा जाए--- Leave your comments please.